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आलेख -10-Dec-2022

दिनांक:१०/१२/२०२२

लेख मंथ प्रतियोगिता
औरत का जीवन- एक कसौटी

आलेख
          विधुर पति और विधवा स्त्री

एक पुरूष जिसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो "विधुर" कहलाता है और पति की मृत्यु हो जाने के बाद स्त्री "विधवा" कही जाती है। यह बात हम सभी भली-भाँति जानते हैं। हमने यह भी देखा है कि एक विधवा स्त्री बिना पुरूष के अपना जीवन व्यतीत कर लेती है परन्तु एक पुरूष बिना स्त्री के नहीं रह सकता। बहुत कम देखने को मिलेगा जब एक पति अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह नहीं करता या किसी स्त्री का सहारा नहीं लेता। सबसे बड़ी बात यह है कि समाज और परिवार भी विधुर को ऐसा करने से नहीं रोकते। 
दीपक अपनी पत्नी से बेइंतहा प्यार करता था। अचानक उसकी पत्नी को कैंसर हो गया और वह मर गई। दो बच्चे पीछे छोड़ गई। दोनों बच्चे बड़े थे। अपने आपको संभाल सकते थे। जो पति कभी अपनी पहली पत्नी से सच्चा प्यार करने का दावा किया करता था वह एक साल भी बिना स्त्री के नहीं रह पाया और छह महीने में ही दूसरी शादी कर ली। अब वह पहले से भी अधिक जवान दिखने लगा था। शारीरिक, मानसिक सुख मिलने से उस पति का जीवन ही बदल गया और वह भूल गया कि कभी उसकी पहली पत्नी भी थी। 
एक विधवा स्त्री के लिए दौबारा शादी करना आज भी समाज पसंद नहीं करता। बहुत कम लोग होगें जो विधवा स्त्रियों का साथ देते हैं। आखिर क्यों? बताइये, जब एक पुरूष दौबारा , तिबारा शादी कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं ? उसे भी अपनी स्वेच्छा से दूसरा विवाह करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। 
दीपिका जवान और सुंदर थी। बच्चे अभी छोटे ही थे। 10 या 11 साल के। अचानक पति का एक्सीडेंट हो जाने से उसकी मृत्यु हो गई। पति के स्थान पर पत्नी को नौकरी मिल गई। अभी दीपिका जवान थी। देखने में सुंदर भी थी। घर वालो ने समझाया कि "अभी जवान हो कब तक अकेले यूहीं रहोगी,? शादी कर लो।" पर दीपिका ने यह कहकर इंकार कर दिया कि बच्चों का जीवन खराब हो जायेगा। लोग क्या कहेगें या समाज क्या कहेगा? दीपिका का कार्य क्षेत्र ऐसा था कि उसे महिलाओं और पुरूष दोनों ही से बात करनी पड़ती थी और दोनों ही के साथ काम करना पड़ता था। जब भी दीपिका किसी पुरूष से बात करती, तभी उसे सोसाइटी वाले अजीब सी नज़रो से घूरने लग जाते थे। तरह तरह की बातें बनाना आम बात हो चुकी थी। दीपिका ने कभी किसी की परवाह नहीं की। वह अपने बच्चों और नौकरी पर ध्यान देती रही। उस स्त्री ने अपने बच्चों की खुशी के लिए अकेले पूरा जीवन बिता दिया परन्तु किसी पराए पुरुष के साथ रहना स्वीकार नहीं किया। उसी के दफ्तर में एक विधुर पुरूष भी था। उसके भी दो बच्चे थे। उसने समाज या परिवार की कोई परवाह नहीं की और दूसरा विवाह कर लिया। दफ्तर वालों ने सहानुभूति दिखाई कि पुरूष अकेला है बेचारा। घर संभाले या बच्चों को संभाले? फिर नौकरी भी तो करनी है।  दफ्तर वालो ने उसकी दूसरी शादी की मिठाई बड़े खुश होकर खाई। 
दीपिका का केस भी तो ऐसा ही था। पर किसी ने उस के प्रति कोई सहानूभूति नहीं दिखाई। मायके वालो ने एक बार पूछकर अपने कर्तव्यों का पालन कर दिया और मुक्त हो गये । पर क्या इससे ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है ? वह भी तो अकेले बच्चों का पालन पोषण कर रही थी । घर से बाहर जाकर नौकरी करती थी । उसकी परेशानी और अकेलापन समाज को नहीं दिखा? पुरूष का तो सभी ने देख लिया। पर औरत का? मायके वालो ने एक वाक्य बोल कर पीछा छुड़ा लिया कि दूसरा विवाह कर लो। फिर बाहर वालो से उम्मीद करना बेकार है।
नारी आरंभ ही से शक्तिशाली मानी गई है । तभी वह अकेले जीवन व्यतीत कर सकती है परन्तु एक पुरूष शायद ही यह सब अकेले कर पाए।
स्त्री सब रिश्तों में निपुर्णता का परिचय देती है,
परिवार की बगिया को महकाकर
अपना परिचय देती है।
फिर भी नहीं समझी जाती भावनाएँ स्त्री की।
स्त्री प्रत्येक सम्बंध में अपना सर्वश्रेष्ठ देती है।
नहीं चाहती धन- दौलत, 
केवल चाहती सम्मान,
उसी सम्मान और प्रेम के लिए 
अपना जीवन समर्पित कर देती है।।

सभी बहनों से एक प्रश्न क्या यह उचित है?

शाहाना परवीन"शान"...✍️
पटियाला पंजाब 




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